शब्दों का बंधन कैसा ।
भावों का जकड़न कैसा ।
इस मन की पीड़ा का ,
यह नेह निवेदन कैसा ।
...
शब्द भाव गढ़कर ।
अश्क़ झड़ते रहे ।
दबकर कलम तले ,
नम निगाह पढ़ते रहे।
..
ज़िस्म आज़ाद रहे ।
रूह नही आज़ाद रही ,
कशिश रूह की ,
ज़िस्म के साथ रही ।
....
कहती बहुत कुछ अक्सर,
पर ज़िंदगी खामोश रही।
इस खामोशी से बेहतर ,
कहने को कुछ भी नही ,।
....
वक़्त बे-वक़्त वो हमे ,
अपना बनाते रहे ।
वक़्त बे-वक़्त यूँ हमे ,
अपना बताते रहे ।
टूटकर कर भी कभी ,
टूट न सके हम ,
निग़ाह में हम ,उनकी ,
संग कहलाते रहे ।
....
जंग लड़ता रहा,
अपने आप से ।
जीतता कभी,
हारता जज़्बात से ।
...
यूँ आदतें मेरी ,
आदत बनती गई ।
शब्द जागते रहे,
कलम चलती रही।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
भावों का जकड़न कैसा ।
इस मन की पीड़ा का ,
यह नेह निवेदन कैसा ।
...
शब्द भाव गढ़कर ।
अश्क़ झड़ते रहे ।
दबकर कलम तले ,
नम निगाह पढ़ते रहे।
..
ज़िस्म आज़ाद रहे ।
रूह नही आज़ाद रही ,
कशिश रूह की ,
ज़िस्म के साथ रही ।
....
कहती बहुत कुछ अक्सर,
पर ज़िंदगी खामोश रही।
इस खामोशी से बेहतर ,
कहने को कुछ भी नही ,।
....
वक़्त बे-वक़्त वो हमे ,
अपना बनाते रहे ।
वक़्त बे-वक़्त यूँ हमे ,
अपना बताते रहे ।
टूटकर कर भी कभी ,
टूट न सके हम ,
निग़ाह में हम ,उनकी ,
संग कहलाते रहे ।
....
जंग लड़ता रहा,
अपने आप से ।
जीतता कभी,
हारता जज़्बात से ।
...
यूँ आदतें मेरी ,
आदत बनती गई ।
शब्द जागते रहे,
कलम चलती रही।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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