शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2019

मुक्तक

597

उलझे सवालों का सुलझा जवाब मांगता है ।
ये वक़्त अक़्सर मुझसे हिसाब मांगता है ।
बहकर आया जो दरिया जिंदगी का दूर से ,
मिल उम्र के समंदर से वो रुआब मांगता है ।

.... 598
चुपके से चल किनारों पे, किनारों तक ।
पतझड़ के आने से , आती बहारों तक ।
तू ठहरना नही कही कभी इन राहो पर ,
मंजिल खुद ही आएगी, तेरे इरादों तक ।

... 599
     कहाँ तक करे प्रयास कोई ।
     है अंत नही आकाश कोई ।
     जब उड़ता है पंक्षी मन का ,
     तब दिशा नही आभास कोई ।

....600
पृष्ठ पृष्ठ पलटानी है ।
जीवन एक कहानी है ।
बहता सा नीर नदी का ,
जीवन एक रवानी है ।

.... 601
   कुछ होंसलों की उड़ाने ।
   परिंदे कुछ नये पुराने ।
   मिलते नही साँझ तक ,
   कुछ अधूरे से ठिकाने ।

.... 602
         जो भी क़ाबिल तेरे होगा ।
          एक वो ही तो तेरा होगा  ।
          ठहरेगा हर हाल साथ तेरे ,
          उफ़्क तक साथ गहरा होगा ।

....603
वो पहले से ही गढ़ लाया अपने किस्से ।
कोई फिर क्या पुछे उससे अपने किस्से ।
गुणा भाग कर  जुबानी जमा खर्च का 
बाँट गया वो सबको थोडे थोडे हिस्से ।
...604
सीखता रहा हालात से बस यूं ही ।
जीतता रहा मैं आज से बस यूं ही ।
ढूंढता चला हूँ इल्म शोहरतो का ,
हसरतों भरे मिजाज से बस यूं ही ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

605
      काबिल वो नही,
      जो क़ाबिल-ऐ-तारीफ है ।
      क़ाबिल तो वो है,
      जो तारीफ-ऐ-आम करते है ।
          .....विवेक दुबे©....


डायरी 6

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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