606
चलता नही मन साथ कलम के ।
खाली रहे अब हाथ कलम के ।
सिकुड़ती रहीं कुलषित कुंठाएं ,
दाग लिए बैठीं माथ कलम के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@......
(कुलषित- कुंठाएं ,)
(क्षुब्ध - अतृप्त भावनाएं)
607
वक़्त का तकाजा है ।
वक़्त वक़्त से हारा है ।
शोहरतों की चाहत में ,
नफरतों को दुलारा है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
608
दिन पीछे रात चली है।
बातो में बात चली है ।
मिली न अविनि अंबर से ,
दूर रही पर साथ चली है।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
चलता नही मन साथ कलम के ।
खाली रहे अब हाथ कलम के ।
सिकुड़ती रहीं कुलषित कुंठाएं ,
दाग लिए बैठीं माथ कलम के ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@......
(कुलषित- कुंठाएं ,)
(क्षुब्ध - अतृप्त भावनाएं)
607
वक़्त का तकाजा है ।
वक़्त वक़्त से हारा है ।
शोहरतों की चाहत में ,
नफरतों को दुलारा है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
608
दिन पीछे रात चली है।
बातो में बात चली है ।
मिली न अविनि अंबर से ,
दूर रही पर साथ चली है।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
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