बुधवार, 31 जुलाई 2019

मुक्तक 820/827

820
तुझे सम्हालना होगा ।
साथ मचलना होगा ।
पाकर खुद को खुद में,
खुद से मिलना होगा ।
... ...
821
जो बदल सके न किसी को ।
तो बदल चल तू खुदी को ।
कर सफ़र मुक़म्मिल अपना ,
मंजिल बना ले रज़ा उसी को ।
... ....
822
आती रहीं बहारें, बहार आने को ।
न बदला असमां,मौसम बिताने को ।
पहनकर लिबास ,   वो जिस्मों के ,
ठहरी रहीं रूहें,नए ज़िस्म पाने को ।
....
823
  ना यूं गुमान पालिये ।
 निगाह अपनों पे भी डालिये । 
 मिलती है छांव दरख़तों में ,
 शाख़ों को ना काट डालिए ।
........
824
लफ्ज़ लफ्ज़ कुरेद सा रहा ।
यूँ हालात से गुरेज़ सा रहा ।
बदलता रहा ही मायने अपने ,
अल्फ़ाज़ करता फ़रेब सा रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....


825
वो पोषित यौवन, स्वेद सुगंधों से ,
चलता ज़ीवन, ज़ीवन का भार लिए ।

 विकट नियति ,चली सतत निरंतर ,
अपने ही न होने का ,आभास लिए ।
 ......
826
गम की स्याही से , जीवन का आनंद लिखा है ।
भाव लिए जीवन ने, जीवन का छंद लिखा है ।
सुर ताल सरल नही हैं , इस जीवन कविता के ,
छूट गया जो गजलों में,गीतों में वो बंद लिखा है ।
.........
827
लिख न सका जवाब, 
   उन सवालों के सामने ।
गुम होते गए हालात , 
    जो ख़यालों के सामने ।

लेकर चला तौफ़ीक़-ए-हुनर , 
      अपने ईमान से ,
होता ही गया लाचार ,
     कुछ मिसालों के सामने ।

गढ़ता ही रहा जो उजाले,
         अंधेरों से लड़कर ,
चोंधियाती रहीं वो निगाहें ,
      उन उजालों के सामने ।

चलता ही चला वक़्त सा, 
       वक़्त के हालात से ,
ठहर न सका अपनी ही,
           निहालों के सामने ।

...विवेक दुबे"निश्चल"@...


तौफ़ीक़/
शक्ति, सामर्थ्य/हिम्मत, हौसला/दैवकृपा।

निहाल/सन्तुष्ट/सफलताएं
..... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 3


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