811
बस निकल चल ।
निगाह फिसल चल ।
खुदगर्ज है दुनियाँ ,
देखता असल चल ।
राह मुड़ी चौराहे पर ,
रास्ते ना बदल चल ।
लुभाते हैं यह नजारे ,
ना ठहर "निश्चल"चल ।
.....
812
हालात से जो हार जाता है ।
वक्त से वो नहीं पार पाता है ।
चला चलता जो अपनी लगन से ,
वो ही तो समय के पार आता है ।
चला चल तू अपनी ही लगन से ,
ये समय ही तो हर बार आता है ।
.......
813
चलते रहे सँग वो दीवाने बहाने से ।
रूह लिए सँग दो जिस्म पुराने से ।
खिलते रहे अश्क़ फ़ूल बनकर ,
मिलकर अपनी ही पहचानों से ।
......
814
साथ चला समय मेरे ,प्रहरी बनकर ।
भोर पहर रात कटी , गहरी बनकर ।
स्वप्न सजे इन , जगती आंखों में ,
आशित कांक्षाओं की, देहरी बनकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
बस निकल चल ।
निगाह फिसल चल ।
खुदगर्ज है दुनियाँ ,
देखता असल चल ।
राह मुड़ी चौराहे पर ,
रास्ते ना बदल चल ।
लुभाते हैं यह नजारे ,
ना ठहर "निश्चल"चल ।
.....
812
हालात से जो हार जाता है ।
वक्त से वो नहीं पार पाता है ।
चला चलता जो अपनी लगन से ,
वो ही तो समय के पार आता है ।
चला चल तू अपनी ही लगन से ,
ये समय ही तो हर बार आता है ।
.......
813
चलते रहे सँग वो दीवाने बहाने से ।
रूह लिए सँग दो जिस्म पुराने से ।
खिलते रहे अश्क़ फ़ूल बनकर ,
मिलकर अपनी ही पहचानों से ।
......
814
साथ चला समय मेरे ,प्रहरी बनकर ।
भोर पहर रात कटी , गहरी बनकर ।
स्वप्न सजे इन , जगती आंखों में ,
आशित कांक्षाओं की, देहरी बनकर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
815
कुछ फैसले कुदरत के ।
मोहताज़ रहे शोहरत के ।
बहता रहा दर्या वक़्त का,
ग़ुम हुये पल मोहलत के ।
......
816
अपने पराये पे गोर न कर ।
जज़्ब इरादों को और न कर ।
बदलती है दुनियाँ हालात से,
साँझ धुंधलके का शोर न कर ।
.......
817
अक़्स तलाशता आदमी ।
निग़ाह सँवारता आदमी ।
इन फ़रेब के आईनों में ,
क्युं सच उभारता आदमी ।
.......
818
एक उम्र ठहर सी रही है ।
ज़िन्दगी निखर सी रही है ।
छुड़ाकर दामन हसरतों का ,
अब चाहतों से डर सी रही है ।
........
819
ज़िस्म ज़ुदा न जान से रहे ।
यूँ रूह तले पहचान से रहे ।
हसरत-ए-जिंदगी की ख़ातिर ,
चाहतों के भी अहसान से रहे ।
... विवेक दुबे "निश्चल"@...
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