828
अशआर-ए-हालात लिखता रहा ।
लिपटकर शब्दों से दिखता रहा ।
सिमेटकर ज़िस्म ख़्वाब ख्यालो का ,
एक रूह-ए-कशिश मिटता रहा।
........
829
दिखाता रहा कैफ़ियत अपनी ,
कुछ दर्द मलाल इस तरह रहा ।
न बदल सका हालात आपनी ,
वो मुतमईन हाल इस तरह रहा ।
....
830
लफ्ज़ लफ्ज़ बेचैन है ।
बस इतना ही चैन है ।
बदलते है हालात तो ,
होती भोर की भी रेन है ।
.... ..
831
वो चराग़ उगलते रहे उजाले ।
आप को कर अंधेरों के हवाले ।
होती रहीं नाफ़रमानीयाँ उम्र की ,
नुक़्स जिंदगी से न गये निकाले ।
...
832
आइनों में नुक़्स निकाले न गये ।
ऐब हमसे कभी सम्हाले न गये ।
कहता रहा हर बात बे-वाकी से ,
इल्ज़ाम बे-बजह उछाले न गये ।
.....
*दुर्मिल सवैया*
चलती इक रात सदा भरने ,
नभ का आँचल अपने तम से ।
जगती रजनी सजती क्षितिज़ा ,
मिलने चलती अपने नभ से ।
सजता नव रूप निशाकर का,
खिलता भरता तन योवन से ,
घटता बढ़ता नित ही विधु भी,
सजता नभ ही तारक तन से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
अशआर-ए-हालात लिखता रहा ।
लिपटकर शब्दों से दिखता रहा ।
सिमेटकर ज़िस्म ख़्वाब ख्यालो का ,
एक रूह-ए-कशिश मिटता रहा।
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829
दिखाता रहा कैफ़ियत अपनी ,
कुछ दर्द मलाल इस तरह रहा ।
न बदल सका हालात आपनी ,
वो मुतमईन हाल इस तरह रहा ।
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830
लफ्ज़ लफ्ज़ बेचैन है ।
बस इतना ही चैन है ।
बदलते है हालात तो ,
होती भोर की भी रेन है ।
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831
वो चराग़ उगलते रहे उजाले ।
आप को कर अंधेरों के हवाले ।
होती रहीं नाफ़रमानीयाँ उम्र की ,
नुक़्स जिंदगी से न गये निकाले ।
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832
आइनों में नुक़्स निकाले न गये ।
ऐब हमसे कभी सम्हाले न गये ।
कहता रहा हर बात बे-वाकी से ,
इल्ज़ाम बे-बजह उछाले न गये ।
.....
*दुर्मिल सवैया*
चलती इक रात सदा भरने ,
नभ का आँचल अपने तम से ।
जगती रजनी सजती क्षितिज़ा ,
मिलने चलती अपने नभ से ।
सजता नव रूप निशाकर का,
खिलता भरता तन योवन से ,
घटता बढ़ता नित ही विधु भी,
सजता नभ ही तारक तन से ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.....
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