सोमवार, 2 मई 2022

जिंदगी

 रौनकें जिंदगी आईने बदलती है ।
जैसे जैसे जिंदगी साँझ ढलती है ।
 गुजरता कारवां मक़ाम से मुक़ाम तक ,
  तब जाकर ही मंजिल मिलती है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...

 जिंदगी आईने सी कर दो ।
 परछाइयाँ ही सामने धर दो ।
 न सिमेटो कुछ भीतर अपने,
 निग़ाह अक़्स मायने भर दो।
..."निश्चल"@....
ये उम्र जब पलटने लगती है ।
निगाहों से झलकने लगती है ।
होते है तजुर्बों के आईने सामने,
 चश्म इरादे चमकने लगती है ।
....."निश्चल"@.....
मैं आईने सा हुनर, पा, न पाया ।
जो सामने आया, दिखा, न पाया ।
मैं छुपाता रहा, अक़्स, दुनियाँ के ,
मैं ख़ुद को ख़ुद में, छिपा, न पाया ।
....निश्चल"@.
रख जरा तू सामने आईने अपने ।
तू पूछ जरा खुद से मायने अपने ।
पाएगा खुद में ही खुद आपको ,
अपनी निगाहों के सामने अपने ।
...."निश्चल"@.....
हुए जब आईने के हवाले हैं ।
दिए आईने ने हमे सहारे हैं।
  सहारा दे सच के दामन को ,
 झूठ के सारे नक़ाब उतारे है।
...."निश्चल"@.....
कभी अपने आप को ,
               आईने में रखना तुम ,
 खुद को अक़्स से ,
                आईने में झकना तुम ।
कहता है क्या फिर,
                 अक़्स तुम्हे देखकर ।
  वयां कर अल्फ़ाज़ में,
                  अपने लिखना तुम ।
 .... विवेक दुबे"निश्चल"@...
...... "निश्चल"@...
अक़्स आईने में देखो यदा क़दा ।
 खुद को पहचानते रहो यदा कद ।
न ऐब लगाओ दुनियाँ को कभी ,
 ऐब अपने तो खोजो  यदा कदा ।
........ "निश्चल"@...
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें । 
 यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
 दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
 तन्हा होने के अहसास कराए हमें। 
 ....... "निश्चल"@...
आइनों ने भी भृम पाले हैं ।
 रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
 ऐब दुनियाँ में उसने निकले हैं ।
......... "निश्चल"@...
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
 जब आइनों में झाँके हैं।
 जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
..... ... "निश्चल"@...
 हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... "निश्चल"@...
 काश! आइनों के लव न सिले होते ।
 काश! आईने भी बोल रहे होते।
 तब,आईने में झांकने से पहले ।
 हम,सौ सौ बार सोच रहे होते ।
....... "निश्चल"@...
झाँकता रहा आईने में अपने ।
 बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
 सजते आँख में मोती कुछ ,
 ढलक जमीं टूटते से सपने ।
 ...... "निश्चल"@...
 सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
 रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।

   ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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