सोमवार, 2 मई 2022

तलाश

   


तलाश को तलाश की तलाश रह गई ।
ज़िंदगी यूँ हसरतों से हताश रह गई ।
सींचता चला वो अश्को से बागवां ,
गुलशन को फिर भी प्यास रह गई ।
ठहरी न मौजे अपने किनारो पे ,
साहिल को मिलने की आस रह गई ।
कट गई उम्र चाहतों की चाह में ,
चाहत-ए-जिंदगी यूँ खास रह गई ।
      बांट अपने दामन की खुशियाँ
     ओर खुद खुशी उदास रह गई ।
   ...विवेक दुबे"निश्चल"@...

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