सोमवार, 2 मई 2022

हस्ति अपनी

    खोजा करता हस्ति अपनी ,

    पथ पर अपने चलता जाता है ।

 साँझ तले दिनकर छुपता ,

 अँधियारो में मैं खो जाता है ।

       उजियारों से थककर वो ,

      अंधियारों में थकान मिटाता है।

 हर रात निशा के आँचल में ,

 वो जीवन फिर पा जाता है।

        सहज रही स्याह निशा उसको ,

       अपनी छाया से भी छुप जाता है ।

हार नही मानूँगा फिर भी मैं ,

खुद को अहसास दिलाता है ।

     कभी हार नही कभी जीत नही ,

     जीवन में बस इतना ही पाता है ।

   चलना ही तो जीवन है ,

  "निश्चल"भानू चलता जाता है ।

   .... विवेक दुबे"निश्चल"@..


कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...