गुरुवार, 9 जून 2022

आईने आईना

 

1
मैं कौन हूँ जमाना तय क्या करेगा ।
मेरा हुनर ही तो मेरा आईना होगा ।
2
ख़ातिर खुशी की ,हँसता रहा बार बार ।
  मेरा आईना भी ,मुझसे रहा बे-ऐतवार ।
3
जो भागे सत्य से , वो साहित्य कैसा।
आईना दिखाता वही , जो है जैसा।
4
तपिश  निग़ाह से पिघल उठे  ।
शाम तले चराग़ हम जल उठे ।
भूलता नही मैं उस अंदाज को ।
  चुपके से तुम ख़्वाब मचल उठे  ।
  लौटना है एक दिन बून्द सा उसे ,
  जो अहसास-ऐ-समंदर बदल उठे ।
चमके सितारे आसमाँ पे नाज से ,
हो ख़ाक एक दिन जमीं से मिल उठे ।
सुकूँ न खोज तू और कि निगाहों से ,
देख आईना जो तुझे देख खिल उठे ।
    . विवेक दुबे"निश्चल"@.
5
तलाश सी फुर्सत की ।
वक़्त की ग़ुरबत सी ।

देखते ही रहे आईना ,
निग़ाह से हसरत की ।

आरजू-ऐ-जिंदगी रही ,
वक़्त की करबट सी ।

चाहकर भी न मिली ,
चाहत सी मोहलत की ।

तलाशता रहा सफ़ऱ ,
शोहरत की दौलत सी ।

.... *विवेक दुबे"निश्चल"*@...
6
मैं कौन हूँ जमाना तय क्या करेगा ।
  मेरा हुनर ही तो मेरा आईना होगा ।

        सजा लूँ मैं अपने आप को ,
         ज़ज्व कर चुभती फ़ांस को ।

ज़ख्म मेरा भी भरा होगा ।
कल मेरा भी सुनहरा होगा ।

           जीतूँगा मैं भी आकाश को ,
           न हार कर अपने विश्वास को ।

जमाना नजर भर रहा होगा ।
  जो मुकाम मेरा रहा होगा ।

     मैं कौन हूँ जमाना तय क्या करेगा ।
      मेरा हुनर ही तो मेरा आईना होगा ।

           ....विवेक दुबे "निश्चल"@..
7
सफ़ल न हो सका मैं हालात से ।
लिपटा रहा विफ़लता के दाग से ।

  जीत न सका जंग अल्फ़ाज़ की ,
  हारता ही रहा मैं अपनी जात से ।

दिखाते जो आईना मुझे अक़्सर ,
दूर हैं क्यों निग़ाह-ऐ-ऐतवार से ।
 
छुपा कर रंजिशें दिल में अपने ,
मिलते रहे वो बड़े आदाब से ।

  रंज न कर कोई तू ऐ "निश्चल" ,
   हारते अपने अपनों के वार से ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@.
8
हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... "निश्चल"@...
9
रौनकें जिंदगी आईने बदलती है ।
जैसे जैसे जिंदगी साँझ ढलती है ।
गुजरता कारवां मक़ाम से मुक़ाम तक ,
  तब जाकर ही मंजिल मिलती है ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@...
10
जिंदगी आईने सी कर दो ।
परछाइयाँ ही सामने धर दो ।
न सिमेटो कुछ भीतर अपने,
निग़ाह अक़्स मायने भर दो।
..."निश्चल"@....
11
ये उम्र जब पलटने लगती है ।
निगाहों से झलकने लगती है ।
होते है तजुर्बों के आईने सामने,
चश्म इरादे चमकने लगती है ।
....."निश्चल"@.....
12
मैं आईने सा हुनर, पा, न पाया ।
जो सामने आया, दिखा, न पाया ।
मैं छुपाता रहा, अक़्स, दुनियाँ के ,
मैं ख़ुद को ख़ुद में, छिपा, न पाया ।
....निश्चल"@.
13
रख जरा तू सामने आईने अपने ।
तू पूछ जरा खुद से मायने अपने ।
पाएगा खुद में ही खुद आपको ,
अपनी निगाहों के सामने अपने ।
...."निश्चल"@.....
14
हुए जब आईने के हवाले हैं ।
दिए आईने ने हमे सहारे हैं।
  सहारा दे सच के दामन को ,
झूठ के सारे नक़ाब उतारे है।
...."निश्चल"@.....
15
कभी अपने आप को ,
               आईने में रखना तुम ,
खुद को अक़्स से ,
                आईने में झकना तुम ।
कहता है क्या फिर,
                 अक़्स तुम्हे देखकर ।
  वयां कर अल्फ़ाज़ में,
                  अपने लिखना तुम ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
...... "निश्चल"@...
16
अक़्स आईने में देखो यदा क़दा ।
खुद को पहचानते रहो यदा कद ।
न ऐब लगाओ दुनियाँ को कभी ,
ऐब अपने तो खोजो  यदा कदा ।
........ "निश्चल"@...
17
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें ।
यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
तन्हा होने के अहसास कराए हमें।
....... "निश्चल"@...
18
आइनों ने भी भृम पाले हैं ।
रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
ऐब दुनियाँ में उसने निकले हैं ।
......... "निश्चल"@...
19
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
जब आइनों में झाँके हैं।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
..... ... "निश्चल"@...
20
हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... "निश्चल"@...
21
काश! आइनों के लव न सिले होते ।
काश! आईने भी बोल रहे होते।
तब,आईने में झांकने से पहले ।
हम,सौ सौ बार सोच रहे होते ।
....... "निश्चल"@...
22
झाँकता रहा आईने में अपने ।
बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
सजते आँख में मोती कुछ ,
ढलक जमीं टूटते से सपने ।
...... "निश्चल"@...
23
सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
24
ये जिंदगी कब कहाँ गुज़र जाती है ।
एक उम्र क्यों समझ नही पाती है ।
टूटते हैं अक़्स ख़्वाब के आइनों में,
क़तरा शक़्ल तन्हा नजर आती है ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@....
25
आइनों में नुक़्स निकाले न गये ।
ऐब हमसे कभी सम्हाले न गये ।
कहते रहे हर बात बे-वाकी से ,
इल्ज़ाम बे-बजह उछाले न गये ।
..... .
26
आइनों से खुद को मैं छुपाता रहा ।
बस अक़्स उसको मैं दिखाता रहा ।
छुपाकर सलवटें अपने चेहरे की ,
आइनों से निग़ाह मैं मिलाता रहा ।
....
27
अक़्स आईने में देखो यदा क़दा ।
खुद को पहचानते रहो यदा कद ।
न ऐब लगाओ दुनियाँ को कभी ,
ऐब अपने तो खोजो  यदा कदा ।
.....28
आइनों ने भी आईने दिखाए हमें ।
यूँ अक़्स अपने नज़र आए हमें ।
दूर रखकर दुनियाँ की निगाहों से,
तन्हा होने के अहसास कराए हमें।
....29
आइनों ने भी भृम पाले हैं ।
रात से साये दिन के उजाले हैं ।
निग़ाह न मिला सका खुद से वो,
ऐब दुनियाँ में उसने निकले हैं ।
......30
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
जब आइनों में झाँके हैं।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
..... 31
हर चेहरा शहर में नक़ली निकला ।
  एक आईना ही असली निकला ।
  लिया सहारा  जिस भी काँधे का ,
   वो काँधा भी  जख़्मी निकला ।
... 32
काश! आइनों के लव न सिले होते ।
काश! आईने भी बोल रहे होते।
तब,आईने में झांकने से पहले ।
हम,सौ सौ बार सोच रहे होते ।
....33
झाँकता रहा आईने में अपने ।
बुनता रहा सुनहरे से सपने ।
सजते आँख में मोती कुछ ,
ढलक जमीं टूटते से सपने ।
...34
सफ़र-ऐ-तलाश हम ही ।
  सफर-ऐ-मुक़ाम हम ही ।
रख निगाहों को आईने में,
  ख़्वाब-ऐ-ख़्याल हम ही ।
.. विवेक दुबे"निश्चल"@...
35
आइनों ने अक़्स उतारे हैं ।
जब आइनों में झाँके हैं।
जिंदा रखते है ज़मीर यूँ,
  खुद को आइना दिखाते हैं ।
..... विवेक दुबे"निश्चल"@....



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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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