शुक्रवार, 11 अगस्त 2023

मुक्तक

 के वो मुझको जानता सा है ।

उसका इतना अहसान सा है ।

याद हूँ मैं उसे गरज़ की ख़ातिर,

वांकी तो वो मुझसे अंजान सा है ।

.....विवेक "निश्चल"...

स्वयं का शिल्पी स्वयं रहा ।

है कुछ अधूरा ये वहम रहा ।

गढ़ता रहा स्वयं को उम्र सारी,

फिर भी कहीं कुछ कम रहा ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..

तू अपनी शान बदल ले ।

तू अपनी पहचान बदल ले ।

स्वार्थ रंगे रिश्तों नातो मे ,

तू अपनी मुस्कान बदल ले ।

...."निश्चल"@..

इतना ही तो खास रहा के मैं न-ख़ास रहा ।

अपनो की बस्ती में गैरो सा अहसास रहा ।

 ।

 छोड़ चली है लहरें जिसको छू छूकर ,

  पर साहिल सा मैं दरिया के पास रहा ।

 

 फिर भी ख़ुद को ख़ुद पर ही विश्वास रहा ।

 

 और साहिल पर भी प्यासा आभास रहा ।


एक अधूरी सी आस रह गई ।

बस इतनी ही प्यास रह गई ।

चलता रहा ख़ुशियाँ साथ ले के,

जिंदगी मग़र उदास रह गई ।

..."निश्चल"@...


इश्क होता नही किसी को हम से ।

रह गए खुद में ख़ुद हम कम से ।

...."निश्चल"@...

Blog spot 10/8/23

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