के वो मुझको जानता सा है ।
उसका इतना अहसान सा है ।
याद हूँ मैं उसे गरज़ की ख़ातिर,
वांकी तो वो मुझसे अंजान सा है ।
.....विवेक "निश्चल"...
स्वयं का शिल्पी स्वयं रहा ।
है कुछ अधूरा ये वहम रहा ।
गढ़ता रहा स्वयं को उम्र सारी,
फिर भी कहीं कुछ कम रहा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@..
तू अपनी शान बदल ले ।
तू अपनी पहचान बदल ले ।
स्वार्थ रंगे रिश्तों नातो मे ,
तू अपनी मुस्कान बदल ले ।
...."निश्चल"@..
इतना ही तो खास रहा के मैं न-ख़ास रहा ।
अपनो की बस्ती में गैरो सा अहसास रहा ।
।
छोड़ चली है लहरें जिसको छू छूकर ,
पर साहिल सा मैं दरिया के पास रहा ।
फिर भी ख़ुद को ख़ुद पर ही विश्वास रहा ।
और साहिल पर भी प्यासा आभास रहा ।
एक अधूरी सी आस रह गई ।
बस इतनी ही प्यास रह गई ।
चलता रहा ख़ुशियाँ साथ ले के,
जिंदगी मग़र उदास रह गई ।
..."निश्चल"@...
इश्क होता नही किसी को हम से ।
रह गए खुद में ख़ुद हम कम से ।
...."निश्चल"@...
Blog spot 10/8/23
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें