शुक्रवार, 31 मार्च 2017

सागर का तुम नीर बनो


धीर बनो गम्भीर बनो ।
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा,
 तब तब राधा की पीर बनो ।
 धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब जब ,
तब दुःख को भी अपना लो ,
 सुख की न तुम जागीर बनो ।
 पीकर गरल हलाहल सारा ,
 अमृत की तुम तासीर बनो  ।
 धीर बनो गंभीर बनो ,
 सागर का तुम नीर बनो ।
   ..... विवेक ......

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