धीर बनो गम्भीर बनो ।
सागर का तुम नीर बनो ।
लुटती हो मर्यादाएं जब जब,
द्रोपती का तुम चीर बनो ।
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा,
तब तब राधा की पीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब जब ,
तब दुःख को भी अपना लो ,
सुख की न तुम जागीर बनो ।
पीकर गरल हलाहल सारा ,
अमृत की तुम तासीर बनो ।
धीर बनो गंभीर बनो ,
सागर का तुम नीर बनो ।
..... विवेक ......
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