शुक्रवार, 31 मार्च 2017

शबनम


शब-ए-इंतज़ार में सितारे टिमटिमाते रहे ।
 चाँद बे-ख़ौफ़ खिलखिलाता रहा ।
 रो पड़ी शबनम आकर  जमीं के आगोश में ।
 सहर भी न थी अपने होश में ।
 जो पूछा क्या हुआ जबाब एक आया ।
 तपता है सूरज पिघलते हैं हम ।
 हर बार इल्ज़ाम क्यों हम पर ही आया ।
 ज़माने ने शबनम को क्यों दबाया।
   ...... विवेक .....

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