.. *मंगलम सु-मंगलम* ..
*अंधकार निवारणं दीप प्रकाशकम ।*
*वंदे श्रीहरि श्रीनिधि फल प्रदायनम ।।*
अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप सजाऊँ ।
यादों की बाती से यादो के दीप जलाऊँ ।
हों जो उजियारे दीप सँग मध्यम मध्यम ,
हो जाए प्रकशित मन तिमिर दूर भगाऊँ ।
तेल भरूँ नव सम्भावनाओं का मैं ।
मन उज्वल नवल प्रकाश जगाऊँ ।
खोजूं फिर गहन अनन्त आकाश मैं ।
अबकी दीवाली कुछ ऐसे दीप जलाऊँ ।
.... *विवेक दुबे* ......
कुछ शुभ कामनाएँ मेरी हों ।
कुछ शुभ कामनाएँ तेरी हों ।
जगमग हों राहें जीवन पथ की,
फिर रात भले ही अँधेरी हो।
..... विवेक दुबे ....
दूर कर प्रकाश से अंधकार को ।
जीत साहस से अत्याचार को ।
न हार कभी अपने विश्वास को ।
जीत ले फिर समूचे आकाश को ।
..... विवेक दुबे ...
भाव खो गए भाबों में।
वादे भूले सब यादों में ।
हर रिश्ता तो अब ,
बिकता है बाज़ारों में।
चकाचोंध की इस दुनियाँ में ।
होता है सब कुछ अँधियारों में ।
सूरज भी अब तो अक़्सर,
सोता है तमस के गलियारों में ।
.... विवेक दुबे ...
कुछ ऐसे नए दीप जलाएँ।
आशाओ के उजियारे आएँ ।
दीप भले ही कल बुझ जाएँ।
आशायें जगमग होती जाएँ ।
रंगोली कुछ यूँ सज जाएँ।
सदभाव के रंग भर जाएँ ।
.... सु-मङ्गलम् दीपावली ....
.....विवेक दुबे©.....
हल्दी चंदन उबटन लगाएँ ।
सुगन्ध श्रृंगार कर सज जाएँ ।
तन महके मन भी महके,
श्रीनिधिः से रूप आरोग्य पाएँ ।
कर प्रथम आवाहन श्रीहरि का,
हरिवल्लभी के चरण पखारे जाएँ
कृपा करें चन्द्रसहोदरी सभी पर,
घर घर प्रभा सिद्धि पुष्टि छाए ।
..... विवेक दुबे .......
डायरी
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