तू ही निर्मल ,
तू ही पवन ,
तू ही गंगाजल ,
ऐसा माता तेरा आँचल।
तेरा रक्त शिराओं से ,
अमृत वक्ष धार बहे।
माता तेरे आँचल मे ही
नित्य कलाओं से चँद्र बड़े ।
तेरे वक्षों से जो सुधा बहे,
दुनियाँ उसको सौगन्ध कहे ।
तेरे पावन स्नेह स्पर्श से,
त्रिदेव भी अभिभूत भए ।
मेरी अँखियाँ तेरी अँखियाँ,
मेरी निंदिया तेरी निंदिया ।
सुध-बुध खोती मेरी खातिर,
मेरे कष्टों से न दूर रहे ।
जगत विधाता भी बस ,
माँ को ही सम्पूर्ण कहें ।
...... विवेक दुबे " निश्चल"@.... ......
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