रविवार, 3 दिसंबर 2017

इस्तेक़वाल 50 का

 आज ताज़ा फिर जवानी के ख्याल करते हैं ।
 गुजरे मोहब्बत भरे दिन फिर याद करते हैं ।
 भूलाकर अदावतें अपनी अपनी सारी ,
 आज सारा मन  मैल साफ करते हैं ।

 गुजर गई बहुत थोड़ी ही रही बाँकी अब ,
 ख़ुशी ख़ुशी पचास इस्तेक़वाल करते हैं ।

 दिखने लगीं हैं सलवटें रुख़्सरों पे अब ।
 आज आईने का फिर दीदार करते हैं ।

 यह सलवटें कोई निशानी नही उम्र की ,
 उम्र तजुरवों का सलवट से सिंगार करते हैं । 
 साफ़ हुई कालिख़ सिर से बालों की अब,
 मन से भी मैल अब हम साफ़ करते हैं ।
   .... विवेक दुबे"निश्चल" @...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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