रविवार, 3 दिसंबर 2017

संग्राम जीवन का


 भाव लिए अखण्ड डूबा कंठ कंठ ।
 लिखे गीत प्रीत के बिखरे खंड खंड। 
 नीर बहा श्याम सा नैनन अभिराम सा, 
 हर गीत की प्रीत के पूर्ण विराम सा ।
  जागा भाव कलम के विश्राम का ।
 अंत यही जीवन के हर संग्राम का ।
 जीवन के हर संग्राम का .....!!
  ... "निश्चल" *विवेक* ....©

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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