धीर बनो गम्भीर बनो
सागर का तुम नीर बनो
लुटती हो मर्यादाएं जब जब
द्रोपती का तुम चीर बनो
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा
तब तब राधा की पीर बनो
धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब जब
तब दुःख को भी अपना लो
सुख की न तुम जागीर बनो
पीकर गरल हलाहल सारा
अमृत की तुम तासीर बनो
धीर बनो गंभीर बनो
सागर का तुम नीर बनो
..... विवेक दुबे©.....
सागर का तुम नीर बनो
लुटती हो मर्यादाएं जब जब
द्रोपती का तुम चीर बनो
देनी हो प्रेम प्यार की परिभाषा
तब तब राधा की पीर बनो
धीर बनो गंभीर बनो .....
आते सुख दुःख जब जब
तब दुःख को भी अपना लो
सुख की न तुम जागीर बनो
पीकर गरल हलाहल सारा
अमृत की तुम तासीर बनो
धीर बनो गंभीर बनो
सागर का तुम नीर बनो
..... विवेक दुबे©.....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें