मस्त हवाओं सा अभिमान बनो।
नदिया की धारा सा संग्राम बनो।
चिरो पर्वत के सीनों को तुम ,
महकी खुशबू सा श्रंगार बनो ।
...
मेरे सायों के साये ,
अपनो से घबराए।
चलकर सँग उजियारों में,
अँधियारों में बिसराएँ ।
पुकारते हम रहे ।
बिसारते तुम रहे।
बसे ख़यालों में तुम,
ख़्वाब में आते रहे।
..."निश्चल" विवेक दुबे ©....
नदिया की धारा सा संग्राम बनो।
चिरो पर्वत के सीनों को तुम ,
महकी खुशबू सा श्रंगार बनो ।
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मेरे सायों के साये ,
अपनो से घबराए।
चलकर सँग उजियारों में,
अँधियारों में बिसराएँ ।
पुकारते हम रहे ।
बिसारते तुम रहे।
बसे ख़यालों में तुम,
ख़्वाब में आते रहे।
..."निश्चल" विवेक दुबे ©....
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