बुधवार, 14 मार्च 2018

बीज डालता वो ।

बीज डालता वो आशा से,
 सींच परिश्रम से धरती को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
 तरु पल्लभ बन जाने को ।

  जोत रहा वो तप्त धरा को ।
  धरती से अन्न उगाने को ।
  सिंचित कर स्वेद कणों से ,
   फिर मातृ सुख दिलाने को ।

  वर्षा ग्रीष्म और जाड़े भी ,
 बाध्य नही रुक जाने को ।
 चलता है अथक भाव से ,
 धरा श्रृंगार सजाने को ।

नव सृजन का अंकुर फूटे ,
 तरु पल्लभ बन जाने को ।

      ... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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