बीज डालता वो आशा से,
सींच परिश्रम से धरती को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
तरु पल्लभ बन जाने को ।
जोत रहा वो तप्त धरा को ।
धरती से अन्न उगाने को ।
सिंचित कर स्वेद कणों से ,
फिर मातृ सुख दिलाने को ।
वर्षा ग्रीष्म और जाड़े भी ,
बाध्य नही रुक जाने को ।
चलता है अथक भाव से ,
धरा श्रृंगार सजाने को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
तरु पल्लभ बन जाने को ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
सींच परिश्रम से धरती को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
तरु पल्लभ बन जाने को ।
जोत रहा वो तप्त धरा को ।
धरती से अन्न उगाने को ।
सिंचित कर स्वेद कणों से ,
फिर मातृ सुख दिलाने को ।
वर्षा ग्रीष्म और जाड़े भी ,
बाध्य नही रुक जाने को ।
चलता है अथक भाव से ,
धरा श्रृंगार सजाने को ।
नव सृजन का अंकुर फूटे ,
तरु पल्लभ बन जाने को ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
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