बुधवार, 14 मार्च 2018

रूप नगर से आया चलकर

रूप नगर से आया चलकर ,
 जाम नगर बस जाने को ।
 रिंद सरीखा बनकर वो ,
 साक़ी से नैन लड़ाने को ।

 मचल रही है कव्य पिपासा,
 शब्द शब्द पी जाने को ।
 भावों के इन प्यालों में ,
 अर्थ जाम भर लाने को ।

पीकर सकीं के हाथों से ,
अपनी प्यास बुझाने को ।
 तरकर कंठ फिर अपना ,
 मदहोश रिंद हो जाने को ।

 पीता है वो बस पीता है ,
 काव्य सँग जी जाने को ।
 सँग चली साक़ी उसके ,
 काव्य जाम पिलाने को ।

 आया वो इस मैख़ाने में ,
  ख़ाक यहीं हो जाने को ।
  रूप नगर से आया चलकर ,
   जाम नगर बस जाने को ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...


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