सोमवार, 12 मार्च 2018

लिखता मिटता सा अक्षर

खामोशी कहतीं अक्सर ।
  लिखता मिटता सा अक्षर ।

       सजकर रात सुहाने तारों से  ,
       चँदा आँख चुराता अक्सर । 

 देख रहा वो आँख मिचौली ,
 दूर छिपा बैठा नभ दिनकर ।

        चाहत में झिलमिल तारो की,
        आ जाता वो अक्सर ।

 दिन के उजियारों में भी ,
 चाँद नजर आता अक़्सर ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@....

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