शुक्रवार, 16 मार्च 2018

चाह

मायूस सुबह ख़ामोश रात थी ।
 अश्क़ से भरी  हर आह थी ।
 थे दामन में सितारे तो बहुत,
 चाँद की मगर मुझे चाह थी ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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