*सुरेन्द छंद*
यगण मगन नगण नगण गुरु
12 2 22 2 , 111 111 2
5,8 यति
भरे हाथों का , मैं अब गरल धरूँ ।
सजा भावों को, ये कटु हृदय तजूँ ।
कड़े साजों को, मैं अब सरल करूँ ।
लिखे गीतों में , ही नित नमन भरूँ ।
नया ऐसा मैं , भारत सुघड़ गढ चलूँ ।
नहीं हो कोई , हो अलग मुझसे ।
मिला प्राणों को , मैं अब निखर चलूँ
उठूँ ऊंचा सा , छा कर शिखर बनूँ
मिला प्राणों को, आज प्रण यह करूँ ।
मिला घ्राणों में ,घ्राण खिलकर बनूँ ।
सजे साजों में, गा सज बिखर चलूँ ।
रचें रागों में , भा रच सभी।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
यगण मगन नगण नगण गुरु
12 2 22 2 , 111 111 2
5,8 यति
भरे हाथों का , मैं अब गरल धरूँ ।
सजा भावों को, ये कटु हृदय तजूँ ।
कड़े साजों को, मैं अब सरल करूँ ।
लिखे गीतों में , ही नित नमन भरूँ ।
नया ऐसा मैं , भारत सुघड़ गढ चलूँ ।
नहीं हो कोई , हो अलग मुझसे ।
मिला प्राणों को , मैं अब निखर चलूँ
उठूँ ऊंचा सा , छा कर शिखर बनूँ
मिला प्राणों को, आज प्रण यह करूँ ।
मिला घ्राणों में ,घ्राण खिलकर बनूँ ।
सजे साजों में, गा सज बिखर चलूँ ।
रचें रागों में , भा रच सभी।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
*सुरेन्द छंद*
यगण मगन नगण नगण गुरु
12 2 22 2 , 111 111 2
5,8 यति
भरे हाथों का , ये अब गरल धरें ।
सजा भावों को, वो कटु हृदय तजें ।
कड़े साजों को, निर्मल सरल करें ।
लिखे गीतों में , वंदन नमन भरें ।
नया ऐसा ये , भारत सुघड़ बसे ।
नहीं हो कोई , पृथक अब हम से ।
मिला प्राणों को , आ अब निखर चलें
उठें ऊंचा सा , छा कर शिखर बनें
मिला प्राणों को, आ अब सपथ करें ।
मिला घ्राणों में , घ्राण सुरभित भरें ।
सजे साजों से , गीत सजकर तभी ।
रचे रागों को , शेष तजकर सभी।
... विवेक दुबे"निश्चल"@....
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