बुधवार, 26 दिसंबर 2018

चल आ महफ़िल में ,

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चल आ महफ़िल में ,
  कुछ वक़्त बिताते हैं ।

  सुनते है तुझको,
  कुछ गीत सुनाते है ।

गुनते है गजलें तेरी ,
नज़्म नई हम गाते है ।

 चल रख चलते है , 
  शब्दों को भाव तले ,

 शब्दों की सरगम से,
 भावों के साज सजाते है ।

 महफ़िल में रहे नही,
 कुछ भी पीछे मन के ,

 इस साँझ धुंधलके में ,
 मन परदे आज उठाते है ।

अपने भावों के प्याले ,
 शब्दों से हम भरकर ,

 चल साँझ तले ,
 जाम हम टकराते हैं ।

चल आ महफ़िल में ,
कुछ वक़्त बिताते हैं ।

....विवेक दुबे "निश्चल"@...
डायरी 6(97)

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