बुधवार, 26 दिसंबर 2018

साथ रहा जो किनारा सा ।

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एक साथ रहा जो किनारा सा ।
कश्ती का रहा वो दुलारा सा । 

लौटती तूफ़ां से टकरा अक्सर ,
साहिल का मिलता सहारा सा ।

रहता है जब भी ख़ामोश समंदर ,
लहरों को साहिल ने पुकारा सा ।

 मचलकर दामन में किनारों पर ,
 साहिल को लहरों ने निखारा सा ।

जलती है जमीं तपन से अपनी , 
प्यास की ख़ातिर उसे पुकारा सा ।

 बरस कर आसमा से उसने  ,
"निश्चल"कर्ज जमीं उतारा सा ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(96)

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