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एक साथ रहा जो किनारा सा ।
कश्ती का रहा वो दुलारा सा ।
लौटती तूफ़ां से टकरा अक्सर ,
साहिल का मिलता सहारा सा ।
रहता है जब भी ख़ामोश समंदर ,
लहरों को साहिल ने पुकारा सा ।
मचलकर दामन में किनारों पर ,
साहिल को लहरों ने निखारा सा ।
जलती है जमीं तपन से अपनी ,
प्यास की ख़ातिर उसे पुकारा सा ।
बरस कर आसमा से उसने ,
"निश्चल"कर्ज जमीं उतारा सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(96)
एक साथ रहा जो किनारा सा ।
कश्ती का रहा वो दुलारा सा ।
लौटती तूफ़ां से टकरा अक्सर ,
साहिल का मिलता सहारा सा ।
रहता है जब भी ख़ामोश समंदर ,
लहरों को साहिल ने पुकारा सा ।
मचलकर दामन में किनारों पर ,
साहिल को लहरों ने निखारा सा ।
जलती है जमीं तपन से अपनी ,
प्यास की ख़ातिर उसे पुकारा सा ।
बरस कर आसमा से उसने ,
"निश्चल"कर्ज जमीं उतारा सा ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(96)
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