बुधवार, 26 दिसंबर 2018

इस दुनियाँ का होकर देख लिया ,

 चलती राहों का एक मुहाना होना है ।
 गहरी रातों का भोर सुहाना होना है ।

इस दुनियाँ का होकर देख लिया ,
चल अब तुझको खुद का होना है ।

 अहसासों की इन उलझी डोरों में ,
 डोर कोई अब नई नही पिरोना है ।

जीवन के मनके मन के धागों से ,
अब जीवन मन में ही पिरोना है ।

चल अब तुझको खुद का होना है ।

अहंकार के इस बियावान वन में ,
अब स्वाभिमान तुझे संजोना है ।

हार रहा तू नाते रिश्ते चलते चलते ,
जीत तले स्वयं को स्वयं का होना है ।

इस दुनियाँ का होकर देख लिया ,

राग नही हो कोई द्वेष नही मन में ,
अब राग रहित ही तुझको होना है ।

खोकर दुनियाँ को दुनियाँ में ही ,
अब ख़ुद को ख़ुद में ही खोना है ।

भटक रहा जो मन चलते चलते ,
"निश्चल"मन अब तुझको होना है ।

इस दुनियाँ का होकर देख लिया ,
चल अब तुझको खुद का होना है ।

.... विवेक दुबे"निश्चल"@...



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