रविवार, 13 जनवरी 2019

जो भी क़ाबिल तेरे होगा ।

702

जो क़ाबिल तेरे होगा ।
वो ही तो तेरा होगा   ।

ठहरेगा वो साथ तेरे ,
उफ़्क तक डेरा होगा ।

न टूटे धारें दरिया की ,
समंदर सा सेहरा होगा ।

न दीवारें शक सुवा कोई,
न निग़ाहों का पहरा होगा ।

जो पहचान बने अपनी  ,
वो अपना ही चेहरा होगा ।

एक ठहरे से गहरे दरिया से ,
रिश्ता रूह का गहरा होगा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....

जो भी क़ाबिल तेरे होगा ।
एक वो ही तो तेरा होगा   ।
ठहरेगा हर हाल साथ तेरे ,
उफ़्क तक साथ गहरा होगा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 6(113)

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...