रविवार, 13 जनवरी 2019

बैठे हैं मुझ पर लोग हँसने को ।

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बैठे हैं मुझ पर लोग हँसने को ।
मै चला हुँ पूरा करने सपने को ।
देखा है एक सपना सुहाना सा ।
सुनहरी धूप का एक मुहाना सा ।

ले चला थामकर उन हाथों को ।
करेंगे जो पूरा  मेरे इरादों को ।
चल पड़े वो कदम साहस लेकर ।
साथ अपने कुछ वादों को लेकर ।

एक शपथ प्रण प्राण में भरकर ।
के वो आएगें मंजिल गढ़ कर ।
डगमगाने न देंगे कदम कभी ।
राह में रोड़े आयें जो भी कही ।

जीतकर अपने ही आप को ।
सहकर हर तपते ताप को ।
भूलकर भी भूल हो न कही ।
न देंगे हंसने वालो को हंसी ।

हंसूगा मै ही उस हँसी रात को ।
छूकर मै अपने ही आकाश को ।
वो सितारो में कही हँस रहा होगा ।
तेरे वास्ते स्वप्न जिसने गडा होगा ।

चुप रहेंगी सब जुबाने वो ।
हंसना चाहती थी निगाहे जो ।

•••••विवेक दुबे"निश्चल"@••
डायरी 6(115). Blog post 13/1/19

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