रविवार, 13 जनवरी 2019

मैं शोर नही मंचो का ,

मैं शोर नही मंचो का , 
   नही कही मैं बजती ताली हूँ ।

फूल नही मैं मधुवन का,
       नही कही मैं कोई माली हूँ ।

मैं शब्दों के इस उपवन का,
       छोटा सा मैं एक हाली हूँ ।

मैं प्याला हूँ शब्दों का,
    नही कभी भावो से खाली हूँ ।
      
सहज रहा हूँ शब्द शब्द को ,
     अन्तर्मन की भरता प्याली हूँ ।
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चल कलम तले कागज़ पर ,
          मैं मौन सदा कहलाता हूँ ।

भरकर भाव भरे मन को,
       भावों को मैं जीता जाता हूँ ।

टीस उठे जब मन में कोई ,
      मैं शब्दों से मन बहलाता हूँ ।

घाव मिले व्यंगों के बाणों से ,
     शब्दो से घावों को सहलाता हूँ ।

गरल भरे इस जीवन पथ पर ,
        "निश्चल"शब्द सुधा पीता जाता हूँ ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@....


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