बुधवार, 1 मई 2019

मुक्तक 711/715

711
एक यही भाग्य का टोटा है ।
शब्दों ने शब्दों को रोका है ।
लिखता मन हर धड़कन को ।
अश्कों को पलकों ने सोखा है ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@....
712
कलम चली दीवानो सी ।
मोहताज रही पहचानों की ।
 पीछे पीछे छोड़ चली ,
 छाँया अपने निशानों की ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
713
मुस्कुराने की भी एक बजा चाहिए ।
नज़्र-ओ-निग़ाह की अदा चाहिए ।
कैसे रहे कायम बात पर अपनी ,
हर अंदाज़ की एक फ़िज़ा चाहिए ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
714
फिर नए प्रश्न से , होती यारी ।
फिर नए जश्न की,  है तैयारी ।
राह गढ़ी मंज़िल ने, जाने कैसी ,
भटक रही यहाँ वहाँ, ख़ुद्दारी ।

.....विवेक दुबे"निश्चल"@...
715
झूँठ चला  पनघट की और ।
लेकर वादों की सतरंगी डोर ।
धर मन भावन गाघर सिर पर ,
फिर जा पहुंचा पनघट की छोर ।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@...

डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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