बुधवार, 1 मई 2019

मुक्तक 722 /727

722
वो हादसे हालात के ।
न-मुक़म्मिल ख्यालात के ।
शबनम को तरसी चाँदनी ,
ज़िस्म अधूरे रात के ।
.....
723
ज़ज्बात मचल जाने दो ।
शबनम पिघल जाने दो ।
एक ख़्वाब की ख़ातिर,
रात को सम्हल जाने दो ।
......
724
मचलते है ज़ज्बात, मचल जाने दो ।
पिघलती है शबनम, पिघल जाने दो ।
फिर एक हसीन ख़्वाब की ख़ातिर ,
ढ़लती सी रात को , सम्हल जाने दो ।
......
725
ये जिंदगी हसीन है ।
तजुर्बा ही जहीन है ।
 हक़ीक़त-ऐ-आसमां पे ,
 ख़्वाब की जमीन है ।
......
726
ये जिंदगी हसीन है ।
तजुर्बा ही जहीन है ।
 ख़्वाब के आसमां पे ,
 हक़ीक़त-ऐ-जमीन है ।
....
727
  मैं दर्द बयां कैसे कर दूँ ।
  दिल दर्द ज़ुदा कैसे कर दूँ  ।
  है ये संग मेरे अपने ही ,
  मैं उन्हें बुत कैसे कर दूँ ।

....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3

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