बुधवार, 1 मई 2019

मुक्तक 716/721

716
हारूँ इतनी तो मेरी सदा नही ।
ठहरा कुछ पल पर थका नही ।
चलता हूँ पथ पे सतत निरन्तर ,
 पर मंजिल से कोई ख़ता नही ।
  ... 
717
रहा बिफल कहाँ ।
 मिला सुफल कहाँ ।
 कर्म बने आभूषण ,
  मैं सतत चला जहाँ ।
......
718
एक सपना भोर सा ,
नही कोई और सा ।
अंनत अंतर् मन में ,
विस्तृत सृष्टि छोर सा ।
.....
719
किसे क्या मिला ।
मुझे क्या मिला ।
वक़्त की छांव में ,
वक़्त से क्या गिला ।
... ..
720
पाषाण हृदय, रजः सम तन ।
रिक्त सम्बेदना,अहंकार मन ।
अहमं तले चलता चिंतन ,
भटके कस्तूरी मृग वन वन ।
......
721
पता नही क्या लिखता सा ।
निग़ाह तले न टिकता सा ।
 दूर रही ख़ामोश निगाहें ,
द्रवित अन्तर्मन मिटता सा ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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