747
रूबरू ज़िंदगी ,घूमती रही ।
रूह की तिश्नगी, ढूँढती रही ।
रहा सफ़र दर्या का, दर्या तक,
मौज साहिल को ,चूमती रही
.....
748
अपने आप को यूँ खोता रहा ।
वक़्त हालात को बोता रहा ।
चलता रहा साथ जज़बात के ,
ये ज़िस्म रूह को ढोता रहा ।
.....
749
अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।
ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।
चलता रहा साथ हालात का ,
ये ज़िस्म रूह का घरोंदा रहा ।
....
750
लफ्ज़ लफ्ज़ निहाल हो गया ।
जश्न महफ़िल मलाल हो गया ।
मैं कहता रहा ग़जल अदब से ,
वो जाने क्युं बे-ख़्याल हो गया ।
...
751
अपनी पहचानो को वो मान चला ।
अपनी पहचानो को पहचान चला ।
जीवन के दामन में भरकर जीवन ,
अपने जीवन को जीवन जान चला ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
रूबरू ज़िंदगी ,घूमती रही ।
रूह की तिश्नगी, ढूँढती रही ।
रहा सफ़र दर्या का, दर्या तक,
मौज साहिल को ,चूमती रही
.....
748
अपने आप को यूँ खोता रहा ।
वक़्त हालात को बोता रहा ।
चलता रहा साथ जज़बात के ,
ये ज़िस्म रूह को ढोता रहा ।
.....
749
अपने आप से यूँ भी सौदा रहा।
ज़िन्दगी का यूँ भी मसौदा रहा।
चलता रहा साथ हालात का ,
ये ज़िस्म रूह का घरोंदा रहा ।
....
750
लफ्ज़ लफ्ज़ निहाल हो गया ।
जश्न महफ़िल मलाल हो गया ।
मैं कहता रहा ग़जल अदब से ,
वो जाने क्युं बे-ख़्याल हो गया ।
...
751
अपनी पहचानो को वो मान चला ।
अपनी पहचानो को पहचान चला ।
जीवन के दामन में भरकर जीवन ,
अपने जीवन को जीवन जान चला ।
.....विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 3
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें