शनिवार, 27 जुलाई 2019

801/810

 801
 मेरी पहचाने , अब यूँ बदलती सी ।
 ज़िस्म पीछे ,परछाइयां चलती सी ।
 सीखे जो चलना ,अंगुली पकड़कर ,
 उन्ही हाथों से ,जिंदगी सम्हलती सी ।
........
802
लिए हक़ीक़त का अहसास सी ।
ओ माँ तू बड़ी ख़ास ख़ास सी ।
 मिलता है सुकूँ तेरे आँचल में ,
 तेरी हँसी में सारी कायनात सी ।
......
803
1222×2
तू इतनी रेहमत दे दे ।
   वक़्त की बस मोहलत दे दे ।

उठें हैं हाथ दुआ में मेरे ,
         अपनो में शोहरत दे दे ।
.......
804
 ये ज़िस्म तो बेजान है ।
 रूह ही तो पहचान है ।
 झूँठी है ये दुनियाँ सारी,
 रब ही तो सच्ची शान है ।
.....
805
 ज़िस्म-ए-इश्क रहा ,दीवाना सा ।
 वो रुह-ए-इश्क़ रहा ,बेगाना सा ।
 करता ही रहा सफर, मुसलसल ,
खोजता रहा एक राह मुहाना सा ।
     ... विवेक दुबे "निश्चल"@.

डायरी 3
 806
मज़हब बदला मेरे हिंदुस्तान ने ।  
 देश प्रेम को ले आया ईमान में ।
 टूट रही है सरहद जात धर्म की ,
खोज लिया खुदा अपना इंसान में ।
.... ...
807
हे नारी है मान तुम्ही से ।
अभिमान तुम्ही से ।
सृजन कर्ता धरा तुम्ही हो ,
सृष्टि का हर प्रान तुम्ही से ।
.....
808
एक चित्र उभार ले ।
हृदय राम उतार ले ।
सहज सब हो जायेगा ,
 प्रीत राम निखार ले ।
.........
809
एक ललक लालसा मन की ।
उस श्याम सलोने दर्पण की ।
मैं रूप निहारु राधिका सा ,
आस लिए मन अर्पण की ।
....
810
तुझे खुशीयाँ मिले जहाँ।
कायनात लेकर चले वहाँ ।
ठहरे हुए वक्त से है हम ,
गुम हो जाएंगे जाने कहाँ ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@...
डायरी 3

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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