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रिश्तों का हो अंजन ।
प्यार का हो बंधन ।
विश्वास के दर्पण में ,
सागर सा हो मन ।
यह राखी ही मेरे ,
शृंगार का हो साधन ।
कभी न हो जो पूरा ,
मुझसे तेरा यह ऋण ।
इस राखी के धागे में ,
यह तन मन हो अर्पण ।
बहना यह जीवन ,
हो बस तुझे समर्पण । ...
।। शुभ राखी ।।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
दायरी 6
रिश्तों का हो अंजन ।
प्यार का हो बंधन ।
विश्वास के दर्पण में ,
सागर सा हो मन ।
यह राखी ही मेरे ,
शृंगार का हो साधन ।
कभी न हो जो पूरा ,
मुझसे तेरा यह ऋण ।
इस राखी के धागे में ,
यह तन मन हो अर्पण ।
बहना यह जीवन ,
हो बस तुझे समर्पण । ...
।। शुभ राखी ।।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
दायरी 6
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