बुधवार, 21 अगस्त 2019

राखी

750
रिश्तों का हो अंजन ।
प्यार का हो बंधन ।
 विश्वास के दर्पण में ,
 सागर सा हो मन ।

 यह राखी ही मेरे ,
 शृंगार का हो साधन ।
 कभी न हो जो पूरा ,
 मुझसे तेरा यह ऋण ।

 इस राखी के धागे में ,
 यह तन मन हो अर्पण ।
 बहना यह जीवन  ,
 हो बस तुझे समर्पण । ...
             
        ।। शुभ राखी  ।।
                 
     ....विवेक दुबे"निश्चल"@....
दायरी 6

कोई टिप्पणी नहीं:

कलम चलती है शब्द जागते हैं।

सम्मान पत्र

  मान मिला सम्मान मिला।  अपनो में स्थान मिला ।  खिली कलम कमल सी,  शब्दों को स्वाभिमान मिला। मेरी यूँ आदतें आदत बनती गई ।  शब्द जागते...