================+
गोरी होरी खेलन आये तोरे द्वार ,
खोल मन नैनों के तू द्वार ।
-------
अंग भर दे गाल गुलाल रंग से ,
नयनों की चितवन से ,
रंगों की कर तू बौछार ।
होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
-----,
रंग दे अपने गाल गुलाबी रंग से ,
तर कर दे नैनों के काजल से ,
इस सूने सूने से मन में ,
कुछ रंग प्रीत के तू डार ।
होरी खेलन आए तोरे द्वार ।
----
तू मेरे हाथों में भी कुछ रंग दे ,
मैं भी मल दूँ तेरे गालन पे ,
चन्दा से रूप सलोने तन पे ,
इन हाथो पे कर दे उपकार ।
होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
----
चितचोर मोहनी चितवन के ,
मन से मन के मिलन से ,
होरी के इस मौसम में ,
टेसू सा केसरिया कर दूं श्रृंगार ।
होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
---
उतरे न रंग इस तन मन से ,
कर दे गौरी तू उपकार ,
मन सा मन से कर के श्रृंगार ।
होरी खेलन आये तोरे द्वार ।
.... विवेक ....
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें