यहाँ फ़ागुन की वो बयार नही ।
बरसते रंगो से कोई प्यार नही।
देख हुरियारे करते हंसी ठिठोली,
सखियों की टोली नजर आती नही ।
--------
सजनी साथ नही भौजी पास नही ।
हम बसे बिदेश घर की आस नही ।
किस संग कैसे खेले होली अब,
सूना यहाँ सब रंगो का मधुमास नही।
----
यहाँ तो नया जमाना नया चलन ।
रंगो से होती सबको बड़ी जलन ।
मिला हाथ से हाथ कहा हेल्लो ,
आत्मीयता से गले लगाने का नही चलन ।
----
...... विवेक ......
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें