मौन निमन्त्रण देती बाला को
रूप सलोनी सी हाला को
पूरी की पूरी मधुशाला को
जाम रंग सा पी जाऊँ
हो कर मदहोश आज मैं
कुछ पल और जी जाऊँ
... विवेक ...
,
ज़र्रा ज़र्रा गुलाब हो
हर सितारा आफताब हो
छू ले जो एक नजर तेरी
ज़िन्दगी तुझ पे निसार हो
,
, ... विवेक ...
प्रेम रंग के रंग सजा दे ।
सजनी मोहे अंग लगा दे ।
रंग दे मोहे अपने रंग में ,
खुद को तू बिसरा दे ।
.... विवेक ..
,
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