छपते रहे अखवारों के कोनों में कभी कभी ।
बिकते रहे हम बाजारों में यूँ कभी कभी ।
सहज लिया कभी किसी ने बड़े प्यार से ,
किया ज़ार ज़ार किसी ने हमे कभी कभी ।
दब गया बोझ तले अपने ही बोझ से ,
ले उड़ा हवा का झोंका भी कभी कभी ।
चमक उठा गहरी स्याही की चमक से ,
धुंधली रह गई वो स्याही कभी कभी ।
चलती है कलम ज़िंदगी की शिद्दत से,
सूख जाती स्याही कलम भी कभी कभी ।
.... .... विवेक दुबे"निश्चल"@.......
लफ़्ज़ों को आवाज देता रहा ।
तन्हाई को ख़्वाब देता रहा ।
न आया रास ज़िन्दगी को कुछ,
ज़िंदगी से हर बात कहता रहा ।
होता नही हर काम मुक़द्दर से ,
कोशिशों से ही हर काम होता है ।
लड़ना होता है ज़िन्दगी से हर कदम ,
जीतता है वही जिगर जिसमे होता है ।
हार नही सकता हालातों से ,
तू जीतेगा जरूर एक दिन।
आदमी के हौसलों के आगे,
कद हालातों का बौना होता है।
.... विवेक दुबे"निश्चल"@.......
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