बुधवार, 13 सितंबर 2017

छपते रहे अखवारों के कोनो में


 छपते रहे अखवारों के कोनों में कभी कभी ।
 बिकते रहे हम बाजारों में यूँ  कभी कभी ।

 सहज लिया कभी किसी ने बड़े प्यार से ,
 किया ज़ार ज़ार किसी ने हमे कभी कभी । 

 दब गया बोझ तले अपने ही बोझ से ,
 ले उड़ा हवा का झोंका भी कभी कभी ।

 चमक उठा गहरी स्याही की चमक से ,
 धुंधली रह गई वो स्याही कभी कभी ।

 चलती है कलम ज़िंदगी की शिद्दत से,
 सूख जाती स्याही कलम भी कभी कभी ।

  ....   .... विवेक दुबे"निश्चल"@.......

लफ़्ज़ों को आवाज देता रहा ।
 तन्हाई को ख़्वाब देता रहा ।

 न आया रास ज़िन्दगी को कुछ,
 ज़िंदगी से हर बात कहता रहा ।

होता नही हर काम मुक़द्दर से ,
 कोशिशों से ही हर काम होता है ।
 लड़ना होता है ज़िन्दगी से हर कदम ,
 जीतता है वही जिगर जिसमे होता है ।

 हार नही सकता हालातों से ,
 तू जीतेगा जरूर एक दिन।
  आदमी के हौसलों के आगे,
 कद हालातों का बौना होता है।


  .... विवेक दुबे"निश्चल"@.......




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