बुधवार, 13 सितंबर 2017

ज़िन्दगी


तजुर्बे ज़िन्दगी के ,जिन्दगी तजुर्बों की ।
  अरमान सो बरस के ,ज़िन्दगी दो घड़ी की ।
  ...

बस एक जलती सिगार ज़िन्दगी।
हर कश धुएँ का गुबार ज़िन्दगी।
 झड़ गई एक.......... चुटकी में ,
 राख सी......... बेज़ार ज़िन्दगी ।


दिल था उधार और मोहब्बत सामने खड़ी थी ।
 ज़िन्दगी के सफ़र की वो जाने कैसी घड़ी थी।

  टिमटिमाते थे जुगनू चाँदनी बिखरी पड़ी थी ।
 ज़िन्दगी के सफ़र की वो रात भी बड़ी थी ।

 उठा था चिलमन और निग़ाह न मिली थी ।
 ज़िन्दगी के सफ़र की वो कशिश बड़ी थी । 

 न थी आरजू कोई और सामने आरजू खड़ी थी  ।
 ज़िन्दगी के सफ़र की वो उलझन बड़ी थी ।

 चलता जिस रास्ते पर उसकी मंज़िल नही थी ।
 ज़िन्दगी के सफ़र में यह राह कैसी मिली थी ।
 पाएगा न कोई मुक़ाम जानता है वो मग़र ।

 ज़िन्दगी उसकी सफ़र पे खड़ी थी ।
 सफ़र पे खड़ी थी ......




तलाश-ए-ज़िन्दगी में खो गया मैं ।
 कुछ यूँ ज़िन्दगी का हो गया मैं ।

........विवेक दुबे ©......

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