शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

सत्य

जो भागे सत्य से , वो साहित्य कैसा।
 आईना बही दिखाता , जो है जैसा।

सम्बंध न तेरा है न मेरा है।
 यह दुनियाँ रेन बसेरा है।
 उड़ जाएगा पंक्षी एक दिन,
 पिंजरे में दो दिन का डेरा है।

.... विवेक दुबे "निश्चल"©....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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