हाँ मुझे आँगे बहुत जाना है ।
दूर निकल बहुत जाना है ।
निकल दूर बहुत अपनों से ,
दिल अपनों का दुखाना है ।
लौटूँगा फिर एक दिन में ,
जब एकाकी हो जाना है ।
स्वप्निल स्वप्न सजाना है ,
वापस मुझको फिर आना है।
नींद तो एक बहाना है ।
माटी को माटी हो जाना है।
मौत तो एक बहाना है,
जीवन एक ठिकाना है ।
आना है और जाना है ,
साश्वत सत्य पुराना है ।
हाँ मुझे बहुत आँगे जाना है ।
.... विवेक दुबे "निश्चल"©.....
Blog post 2/2/18
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