कन्टक पथ पर चलना होता है ।
सत्य साथ के होना होता है ।
धर धैर्य हृदय में सह कष्टों को ,
हृदय प्रकट राम तब होता है ।
विजय त्रिलोकपति पर पाकर ,
राज्य विभीषण को देना होता है ।
सुनकर एक पुकार किसी की,
सीता को भी खोना होता है ।
वचन भंग न हो जाए पिता के ,
वन वासी तब होना होता है ।
खाकर जूठे बेर शबरी के ,
शत्रु को पूज्य कहना होता है ।
जीता जब स्वयं ने स्वयं को ,
हृदय प्रकट राम तब होता है ।
..... "निश्चल" विवेक दुबे....
सत्य साथ के होना होता है ।
धर धैर्य हृदय में सह कष्टों को ,
हृदय प्रकट राम तब होता है ।
विजय त्रिलोकपति पर पाकर ,
राज्य विभीषण को देना होता है ।
सुनकर एक पुकार किसी की,
सीता को भी खोना होता है ।
वचन भंग न हो जाए पिता के ,
वन वासी तब होना होता है ।
खाकर जूठे बेर शबरी के ,
शत्रु को पूज्य कहना होता है ।
जीता जब स्वयं ने स्वयं को ,
हृदय प्रकट राम तब होता है ।
..... "निश्चल" विवेक दुबे....
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