शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

कंटक पथ चलना होता है

कन्टक पथ पर चलना होता है ।
सत्य साथ के होना होता है ।
       धर धैर्य हृदय में सह कष्टों को ,
       हृदय प्रकट राम तब होता है । 
  विजय त्रिलोकपति पर पाकर ,
 राज्य विभीषण को देना होता है ।
       सुनकर एक पुकार किसी की,
       सीता को भी खोना होता है  ।
  वचन भंग न हो जाए पिता के ,
 वन वासी तब होना होता है ।
       खाकर जूठे बेर शबरी के ,
     शत्रु को पूज्य कहना होता है ।
 जीता जब स्वयं ने स्वयं को ,
 हृदय प्रकट राम तब होता है ।
   ..... "निश्चल" विवेक दुबे....

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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