सोमवार, 3 दिसंबर 2018

रजः को रजः पे सोना है ।

 सबकी अपनी अपनी व्यथा है ।
ये जीवन एक तार्किक कथा है ।

    रिक्त रहा कुछ मन मौन धरा है ।
    एक तन उजला व्योम भरा है ।

रंग रंग से हर रंग सटा है ।
जीवन रंगों की रंगीन लता है ।

    है रंग अधूरी कही कोई छटा है । 
    हम जाने कैसे कौन रंग घटा है ।

कब कुछ क्या होता है ।
कुछ क्या कब होना है ।

छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।

गूढ़ नही कही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..

डायरी 6(53)

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