सबकी अपनी अपनी व्यथा है ।
ये जीवन एक तार्किक कथा है ।
रिक्त रहा कुछ मन मौन धरा है ।
एक तन उजला व्योम भरा है ।
रंग रंग से हर रंग सटा है ।
जीवन रंगों की रंगीन लता है ।
है रंग अधूरी कही कोई छटा है ।
हम जाने कैसे कौन रंग घटा है ।
कब कुछ क्या होता है ।
कुछ क्या कब होना है ।
छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।
गूढ़ नही कही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(53)
ये जीवन एक तार्किक कथा है ।
रिक्त रहा कुछ मन मौन धरा है ।
एक तन उजला व्योम भरा है ।
रंग रंग से हर रंग सटा है ।
जीवन रंगों की रंगीन लता है ।
है रंग अधूरी कही कोई छटा है ।
हम जाने कैसे कौन रंग घटा है ।
कब कुछ क्या होता है ।
कुछ क्या कब होना है ।
छूट रहे कुछ प्रश्नों में ,
एक प्रश्न यही संजोना है ।
गूढ़ नही कही कुछ कोई ,
रजः को रजः पे सोना है ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
डायरी 6(53)
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