सोमवार, 3 दिसंबर 2018

इतना ही कर्ज़ रहा ।

इतना ही कर्ज़ रहा ।
के मैं बे-अर्ज़ रहा ।

      निभाता रहा रिश्ते ,
      यह मेरा फ़र्ज रहा ।
.. 
बदलता रहा तासीर ,
यह कैसा मर्ज़ रहा ।

       आया नही नज़र जो ,
       अश्क़ निग़ाह दर्ज रहा ।

हर ख़ुशी की ख़ातिर ,
हंसता एक दर्द रहा ।

  हर एक मुब्तसिम लब ,
  असर बड़ा सर्द रहा ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@...

तबस्सुम/मुब्तसिम/मुस्कान
डायरी 6(55)

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