कुछ तो रस निकले, उस मंथन से ।
शब्द चुने है जो मन , अन्तर्मन से ।
एक मुस्कान खिले , उन अधरों पर ,
दो नयन मिलें हो , जब दर्पन से ।
..--------
मन रिक्त रहे न , कुछ मौन से ।
कुछ ताने न हों , उजले व्योम से
रंग रहें नही अधूरे , कुछ वानो के ,
न सोचे हम , रंग भरें अब कौन से ।
...-------
हमे मिले कुछ ऊंचा , असमान से ।
हो जुदा कुछ जो , इस जहान से ।
एक पहचान हो , कल अपनी ,
अपने ही छोड़े , कदम निशान से ।
उठते रहे हाथ , हरदम ही शान से ,
हर दुआ में मेरे , इस ईमान से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
रिक्त रहे कुछ मन मौन से ।
एक ताने उजले व्योम से ।
हैं रंग अधूरे कुछ वाने के ,
मैं रंग भरूँ अब कौन से ।
.
शब्द चुने है जो मन , अन्तर्मन से ।
एक मुस्कान खिले , उन अधरों पर ,
दो नयन मिलें हो , जब दर्पन से ।
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मन रिक्त रहे न , कुछ मौन से ।
कुछ ताने न हों , उजले व्योम से
रंग रहें नही अधूरे , कुछ वानो के ,
न सोचे हम , रंग भरें अब कौन से ।
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हमे मिले कुछ ऊंचा , असमान से ।
हो जुदा कुछ जो , इस जहान से ।
एक पहचान हो , कल अपनी ,
अपने ही छोड़े , कदम निशान से ।
उठते रहे हाथ , हरदम ही शान से ,
हर दुआ में मेरे , इस ईमान से ।
... विवेक दुबे"निश्चल"@..
रिक्त रहे कुछ मन मौन से ।
एक ताने उजले व्योम से ।
हैं रंग अधूरे कुछ वाने के ,
मैं रंग भरूँ अब कौन से ।
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