सोमवार, 3 दिसंबर 2018

दो नयन मिलें हो , जब दर्पन से ।

 कुछ तो रस निकले,  उस मंथन से ।
 शब्द चुने है जो मन ,  अन्तर्मन से ।

 एक मुस्कान खिले , उन अधरों पर ,
 दो नयन मिलें हो  ,   जब दर्पन से ।
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  मन रिक्त रहे न , कुछ मौन से ।
  कुछ ताने न हों , उजले व्योम से 

  रंग रहें नही अधूरे , कुछ वानो के ,
  न सोचे हम , रंग भरें अब कौन से ।
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 हमे मिले कुछ ऊंचा , असमान से ।
 हो जुदा कुछ जो , इस जहान से ।

एक पहचान हो , कल अपनी ,
अपने ही छोड़े , कदम निशान से ।

उठते रहे हाथ , हरदम ही शान से ,
हर दुआ में मेरे  , इस ईमान  से ।

... विवेक दुबे"निश्चल"@..




रिक्त रहे कुछ मन मौन से ।
एक ताने उजले व्योम से ।

हैं रंग अधूरे कुछ वाने के ,
मैं रंग भरूँ अब कौन से । 
.


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