सोमवार, 3 दिसंबर 2018

अल्फ़ाज़ के रहे यूँ असर ।

 अल्फ़ाज़ के रहे यूँ असर ।
  मायने रहे क्युं बे-असर ।

     रात सर्द स्याह असरात की ,
    होती नही क्युं अब सहर ।

छोड़कर बुनियाद अपनी ,
मकां आज क्युं रहे बिखर ।

     चलते रहे एक राह पर ,
     रहे रिश्ते पर तितर बितर ।


....विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(51)

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