अल्फ़ाज़ के रहे यूँ असर ।
मायने रहे क्युं बे-असर ।
रात सर्द स्याह असरात की ,
होती नही क्युं अब सहर ।
छोड़कर बुनियाद अपनी ,
मकां आज क्युं रहे बिखर ।
चलते रहे एक राह पर ,
रहे रिश्ते पर तितर बितर ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(51)
मायने रहे क्युं बे-असर ।
रात सर्द स्याह असरात की ,
होती नही क्युं अब सहर ।
छोड़कर बुनियाद अपनी ,
मकां आज क्युं रहे बिखर ।
चलते रहे एक राह पर ,
रहे रिश्ते पर तितर बितर ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
डायरी 6(51)
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