बुधवार, 27 जून 2018

चिलमन


 चिलमन निगाह गहरे पड़े थे ।
  सुनसान रास्ते बिखरे पड़े थे ।

चाँदनी आगोश फ़लक के ,
इल्ज़ाम चाँद चेहरे पड़े थे ।

 रुख़सत हुआ वास्ते सुबह के ,
 सितारे असमां बिखरे पड़े थे ।

 न आई मौज दरिया की कोई ,
 जिस किनारे पे दोनों खड़े थे।

..... विवेक दुबे"निश्चल"@...

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कलम चलती है शब्द जागते हैं।

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