ग़ज़ल प्रतियोगिता
बहारों ने तुझको पुकारा भी होगा ।
मिलाने निग़ाहें संवारा भी होगा ।
झुकाकर निग़ाहें बड़ी ही अदा से ,
इशारों में दिल को हारा भी होगा ।
इशारों में दिल को हारा भी होगा ।
चढ़ा इश्क़ परवाज़ राहे ख़ुदा में ।
हुस्न आइने में उतारा भी होगा ।
हुस्न आइने में उतारा भी होगा ।
चला हूँ डगर पे तुझे साथ ले के ,
कहीं तो मुक़द्दर हमारा भी होगा ।
कहीं तो मुक़द्दर हमारा भी होगा ।
नही है सफर पे मुसाफ़िर अकेला,
मुक़ा मंजिल पे इक हमारा भी होगा ।
मुक़ा मंजिल पे इक हमारा भी होगा ।
रहेंगे जहाँ पे सफर में अकेले ,
वहाँ पे दुआ का सहारा भी होगा ।
वहाँ पे दुआ का सहारा भी होगा ।
बहा है सदा साथ "निश्चल" दर्या के ,
कही तो युं मेरा किनारा भी होगा ।
कही तो युं मेरा किनारा भी होगा ।
....विवेक दुबे"निश्चल"@....
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